☞ रबीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा है कि धूल स्वंय अपमान सह लेती है और बदले में फूलो का उपहार देती है। |
☞ नेपोलियन ने कहा था कि किसी कार्य को खूबसूरती से करने के लिए मनुष्य को उसे स्वयं करना चाहिएI |
☞ हमारी रूचि हमारे जीवन की परख है,हमारे मनुष्यत्व की पहचान है-रस्किन |
☞ प्रेमचन्द ने कहा है कि धनी को अपने धन का मद रहता है,अहंकार रहता है,परन्तु गरीब की झोपड़ी में मद और अहंकार के लिए स्थान नहीं रहता। |
☞ शोपेनहार-एकान्त मे रहना ही महान् आत्माओं का भाग्य है। |
☞ कहावत कृतज्ञता मित्रता को चिरस्थायी रखती है और नए मित्र बनाती है। |
☞ श्रीराम शर्मा आचार्य ने कहा है कि जीवन का आनद गौरव के साथ,स्वाभिमान के साथ जीने में है। |
☞ हरिभाऊ उपाध्याय ने कहा है कि अनासक्ति की कसौटी यह है कि फिर उस वस्तु के अभाव में हम कष्ट का अनुभव ने करे। |
☞ तुम केवल श्रद्धा हो-जयशंकर प्रसाद |
☞ पुरूष विजय का भूखा होता है नारी समर्पण की महादेवी वर्मा नारी बड़े से बड़ा दुख होने पर भी मुस्कराहट लेकर सह लेती है-अज्ञात |
☞ सुन्दर नारी रत्न होती है और भली नारी रत्नों का खजाना-सादी नारियों पुरूषों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान होती है क्योकि वे अपेक्षाकृत कम जानती है परन्तु समझती अधिक है- स्टीफंन्स |
☞ पुरूष सिर है,नारी गर्दन,गर्दन सिर को घुमाती है-अज्ञात |
☞ जो किसी वस्तु की आशा नहीं करते वे निराशा नहीं होगे-पोप |
☞ निराशा निर्वलता की चिन्ह है-स्वामी रामतीर्थ |
☞ जीवन ऋतु में परिवर्त्तन स्वाभाविक है-आज्ञत |
☞ निराशा से जीवन में बहुमूल्य तत्व नष्ट हो जाते है-स्वेट मार्डन |
☞ परिवर्त्तन ही सुष्टि है जीवन है स्थिर होना मृत्यु है- जयशंकर प्रसाद |
☞ निश्चेष्टा शांति मरण है,प्रकृति क्रियाशील है-जयशंकर प्रसाद |
☞ कामना का त्याग ही उत्तम तप है-श्रीमद् भागवत |
☞ धन किसी व्यक्ति का नही सम्पूर्ण राष्ट्र का है-यजुर्वेद |
☞ गोधन,गजधन,वाजिधन और रतन धन खान ! |
☞ जो आवै संतोष धन सब धन धुरि समान !!-कबीर |
☞ धन से धन की भूख बढ़ती है तृष्टि नही होती-प्रेमचन्द्र |
☞ परिश्रम से कमाया धन और उसका सदुपयोग बहुत बड़ी नियामत है-कहावत |
☞ जो मेरा धन चुराता है मेरी तुच्छ वस्तु ही ले जाता है-शेक्सपियर |