Chalukya Dynasty,‌‌‌‌‌‌चालुक्य वंश,GK Questions Answer, General Knowledge-atmword.com

‌‌Chalukya Dynasty
‌‌‌चालुक्य वंश

☛ चालुक्य का स्थल वर्तमान कर्नाटक के बीजापुर जिलें में स्थित बादामी या वातापी नामक स्थान था।
☛  जयसिंह चालुक्य वंश का संस्थापक था।
☛  जयसिंह के बाद उसका पुत्र रणराज राजा हुआ।
☛  पुलकेशिन प्रथम बादामी के चालुक्य वंश का संस्थापक था।
☛  पुलकेशिन प्रथम ने वातापी को अपना राजधानी बनाया।
☛  पुलकेशिन ने सत्याश्रय तथा रणविक्रम पृथ्वी वल्लभ जैसी उपाधियां धारण की।
☛  पुलकेशिन ने अश्वमेध,वाजपेय आदि वैदिक यज्ञों का अनुष्ठान किया।
☛  पुलकेशिन प्रथम का पुत्र कीर्तिवर्मन प्रथम था।
☛  कीर्तिवर्मन प्रथम ने पुरूरण पराक्रम,पृथ्वी वल्लभ एवं सत्याश्रय की उपाधि धारण की।
☛  कीर्तिवर्मन प्रथम के समकालीन कदम्ब शासक सभवत: अजयवर्मा था।
☛  कीर्तिवर्मन को वातापी का प्रथम निर्माता कहा जाता है।
☛  कीर्तिवर्मन प्रथम का भाई मंगलेश अगला चालुक्य शासक बना।
Bhakti and Sufi Movement
Bharat Ke Parmukh Aitihasik Yuddh Chalukya Dynasty
☛  मंगलेश ने ध्रुवराज इन्द्रवर्मा को रेवती दीप का उपराजा बना दिया।
☛  मंगलेश वैष्णव धर्म का अनुयायी था तथा उसे परमभागवत् कहा गया है।
☛  मंगलेश ने बादामी के गुहा मंदिर का निर्माण पूरा करवाया जिसका प्रारभ कीर्तिवर्मन ने किया था।
☛  ऐलोह प्रशस्ति के अनुसार कीर्तिवर्मन का पुत्र पुलकेशिन द्धितीय अपने चाचा मंगलेश की हत्या कर सिहासन पर बैठा।
☛  पुलकेशिन द्धितीय ने सत्याश्रय,श्री पृथ्वी वल्लभ महाराज की उपाधि धारण की थी।
☛  पुलकेशिन द्धितीय ने हर्ष को परास्त कर परमेश्वेर की उपाधि धारण की।
☛  सम्भवत: अपनी राजधानी की सुरक्षा करता हुआ ही पुलकेशिन द्धितीय पल्लव सेनानायक द्धारा युद्ध क्षेत्र में ही मार दिया गया। इस विजय के बाद ही नरसिंह वर्मन ने वातापिकोट की उपाधि धारण की।
☛  पुलकेशिन द्धितीय ने दक्षिणापथेश्वर की उपाधि धारण की इसके अतिरिक्त वल्लभ परमेश्वेर परम भागवत भट्टारक तथा महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।
☛  मुस्लिम इतिहासकार तबारी के अनुसार 625-626 र्इ. में पुलकेशिन द्धितीय ने र्इरान के राजा खुसरो द्धितीय के दरबार में अपना दूतमडल भेजा।
☛  विक्रमादित्य प्रथम पुलकेशिन द्वितीय का पुत्र था।
☛  विक्रमादित्य प्रथम लगभग 654-655 ई. में गद्दी पर बैठा।
☛  विक्रमादित्य प्रथम ने श्रीपृथ्वीवल्लभ, भट्टारक, महाराजधिराज, परमेश्वर, रण रसिक आदि उपाधि धारण की।
☛  विनयादित्य के बाद उसका पुत्र विजयादित्य शासक बना।
☛  विजयादित्य ने भी महाराजाधिराज,परमेष्वर, भट्टारक आदि उपाधियां धारण की थी।
☛  उसके उत्ताधिकारियो के लेखो में उसे समस्त भुवनाश्रय की उपाधि से सुशोभित किया गया है।
☛  विजयादित्य के शासन काल में विशाल शिव मंदिर का निर्माण पट्टदकल में हुआ था।
☛  विजयादित्य का शासनकाल वातापी के चालुक्य वंश में सबसे अधिक समय तक राज किया।
☛  विजयादित्य के बाद विक्रमादित्य द्धितीय शासक बना।
☛  विक्रमादित्य द्धितीय ने पल्लव नरेश नंदिवर्मन को पराजित किया। उसने कॉची के राजसिंहश्वेर मंदिर की दीवार पर एक अभिलेख उत्र्कीर्ण करवाया एवं कांचिकोड की उपाधि धारण की।
☛  विक्रमादित्य द्धितीय को दो महारानियॉ थी। लोकमहादेवी और त्रैलाक्य महादेवी। ये दोनो हैहय (कलचुरि) वंश की कन्यांए एवं सगी बहने थी।
☛  लोक महादेवी ने लोकेष्वर के विशाल पाषाण मंदिर का निर्माण करवाया था। जिसे विरूपाक्ष मंदिर भी कहा जाता है और त्रैलोक्य महादेवी ने त्रैलोकेश्वेर मदिर का निर्माण करवाया था।
☛  अगला शासक कीर्तिवर्मन द्वितीय हुआ जो सभवत: वातापी के चालुक्य शासकों की श्रृखला का अतिंम शासक बना। इसने सार्वभौम,पृथ्वीराज का प्रिय राजाओ के राजा आदि की उपाधि धारण की।
☛  दतिदुर्ग (राष्ट्रकुट) ने कातिवर्मन को परास्त कर अपने को स्वंतत्र शासक के रूप में स्थापित किया और इस तरह वातापी के चालुक्य वंष का अतं हुआ।

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