Maukhari Rajvansh of Kannauj,‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌कन्नौज का मौखिर राजवंश,GK Questions Answer, General Knowledge-atmword.com

‌Maukhari Rajvansh of Kannauj
‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌कन्नौज का मौखिर राजवंश

* मौखिर मूलत: गया जिले के निवासी थे।
* हर्शचरित में उन्हे मुखरवंश तथा कादम्बरी में मौखरि वंश कहा गया है।
* मुखर नामक आदि पुरूष की वे सतांन थे अत: मौखरि कहे गये।
* मौखिरयो की गंगा-युमना के दोआब में शासन करने वाली शाखा ही इतिहास में सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इसकी राजधानी कन्नौज थी।
* हरिवर्मा को मौखिर शासको की नयी शाखा का पहला राजा था और वह महाराज की उपाधि दी गयी है।
* हरिवर्मा के बाद आदित्यवर्मा शासक बना। उसने कृष्णगुप्त की पुत्री और मगध के हर्षगुप्त की बहन हर्षगुप्ता से विवाह किया।
* ईश्वरवर्मा ने अपनी राजधानी शायद मन्दसौर से धारा में बदल ली थी।
* असीरगढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है कि देवी उपगुप्त का विवाह ईश्वरवर्मा से हुआ था।
* देवी उपगुप्त मगध के गुप्त वंश की राजकुमारी थी।
* हरहा अभिलेख से मालूम होता है कि ईश्वरवर्मा दयावान,करूणामय,सदाचारी,महत्ताकांक्षी, आत्मनिर्भर,सत्यवक्ता और परमदानी था।
* ईश्वरवर्मा के बाद उसका पुत्र ईशानवर्मा शासक बना। मौखरि वंश का वह पहला राजा था जिसने महाराधिराज की उपाधि धारण की।
* चालुक्यों,आन्ध्रों और गौड़ो पर ईशानवर्मा की विजय से उसने महाराजाधिराज उपाधि अर्जित की।
* मौखरियों को सामान्त स्थिति से स्वतंत्र स्थिति में लाने वाला प्रतापी शासक र्इशानवर्मा (लगभग 550 ई. से 574 ई.) था।
* अफसढ़ अभिलेख के अनुसार कुमारगुप्त और र्इशानवर्मा के बीच भीषण युद्ध हुआ।
* ईशानवर्मा वैदिक धर्म का शोशक था तथा उसने समाज में वणश्रिम धर्म की प्रतिष्ठा की थी।
* ईशानवर्मा के बाद उसका पुत्र सर्ववर्मा मौखरि वंश का राजा बना।
* अफसढ़ अभिलेख के अनुसार युद्ध में दामोदरगुप्त मूच्छित हो गया और सम्भत: मार डाला गया।
* मगध को मौखरि अधिपत्य के अतर्गत लाने वाला प्रथम शासक सर्ववर्मा ही था।
* सर्ववर्मा के बाद उसका पुत्र अवन्तिवर्मा शासक बना।
* थानेश्वर के पुश्यभूति वंश के साथ मौखरि वंश का वैवाहिक सबंध स्थापित हुआ।
* अवन्तिवर्मा का पुत्र और उत्तराधिकारी ग्रहवर्मा (600 से 605 ई.) मौखरि वंश का राजा बना।
* मगध में ग्रहवर्मा के छोटे भाई सुर्यचन्द्रवर्मा ने अपनी स्वतंत्रता स्थापित कर ली।
* ग्रहवर्मा का विवाह थानेश्वर के राजा प्रभाकर वर्धन की पु़त्री राज्यश्री के साथ हुआ था।
* राज्यश्री केवल 12 साल की थी और नि:सतांन थी।
* हृोनसांग के विवरण के ज्ञात होता है कि कन्नौज के सिहांसन पर हर्ष और राज्यश्री साथ-साथ बैठा करते थे।
Bhakti and Sufi Movement
Bharat Ke Parmukh Aitihasik Yuddh Chalukya Dynasty
* ग्रहवर्मा की मृत्यु के बाद हर्ष ने अपनी राजधानी कन्नौज स्थानान्तरित कर दी थी।
* सुचन्द्रवर्मा सम्भवतं: मौखरि वंश का अतिम शासक था।
* सुचन्द्रवर्मा उत्तर गुप्तवंशी आदित्यसेन का समकालीन था।
* आर्यमजुश्रीमूलकल्प में ग्रहवर्मा के बाद सुव्र नामक शासक का उल्लेख मिलता है।
* सभवत: सुव्र तथा सुच एक ही व्यक्ति है।
* नेपाली अभिलेख से पता चलता है कि योगवर्मा नामक मौखरि राजा उत्तरगुप्त वंशी आदित्यसेन का दामाद था।
* भास्कर वर्मन (असम) हर्षवर्धन का समकलीन था।
* दह प्रथम ने भड़ौन राज्य की स्थापना की थी।
* सुप्रसिद्ध लेखक वाणभट्ट द्धारा रचित हर्षरचित वर्धन इतिहास का सर्वप्रमुख स्रोत्र है।
* हर्ष ने स्वंय तीन नाटक ग्रन्थ लिखे थे प्रियदर्षिका रत्नावली तथा नागानन्द।
* हर्ष के समय में हृोनत्सांन भारत की यात्रा पर आया और 16 वंर्षो तक निवास किया उसका यात्रा का विवरण सी यू. की नाम से प्रसिद्ध है।
* हृोनसांग की जीवनी की रचना हृोनसांग का त्रित्र हृी.ली ने की थी।
* इत्सिंग नामक एक अन्य चीनी यात्री के विवरण से भी हर्षकालीन इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। अग्रेजी अनुवाद जापानी बौद्ध विद्धान तक्कुसु ने ए रिकार्ड ऑफ बुद्धिस्ट रिलीजन नाम से प्रस्तुत किया।
* बांसखेड़ा का अभिलेख 1894 र्इस्वी में उत्तर प्रदेश के शाहजहॉपुर जिले में स्थित बांसखेड़ा नामक स्थान से मिला है।
* मधुबन का लेख यह उत्तर प्रदेश के मऊ जिले का घोसी तहसील में स्थित हैं
* चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्धितीय के दरबारी कवि रविकीर्ति थे।
* हर्ष की दो मुहरे नालंदा तथा सोनीपत से प्राप्त हुर्इ है। पहली मिट्टी तथा दूसरी तॉबे की है।
* सोनपत मुहर में ही हमें हर्ष का पुरा नाम हर्षवर्धन प्राप्त होता है।
* दिल्ली और पंजाब के भू-भाग पर बसा हुआ श्रीकण्ड प्राचीन काल का एक अत्यतं समृद्धशाली जनपद था।
* पुष्यभूति नामक राजा ने छठी शताब्दी र्इस्वी के प्रारम्भ में वर्धन राजवंश की स्थापना की।
* हृोनसांग ने हर्ष को फी- शे अर्थात्त वैष्य जाति का बताया है। आर्यमजुश्रीमूलकल्प नामक ग्रन्थ से भी हर्श के वैश्य जाति होने की पुष्टि होती है। आर.एस. त्रिपाठी, वी.एस.पाठक, यू.एन.धोषाल आदि ने भी पुष्टि की है।
* नरवर्द्वन,राज्यवर्द्वन और आदित्यवर्द्वन को केवल महाराज कहा गया है।
* प्रभाकर वर्द्वन ने महाराधिराज तथा परमभट्टारक की उपाधि धारण की थी।
* प्रभाकरवर्धन की पत्नी यशोमती से दो पुत्र राज्य वर्धन और हर्षवर्धन तथा एक कन्या राज्यश्री को जन्म दी।
* राज्यश्री का विवाह कन्नौज के मौखिर राजा ग्रहवर्मा के साथ सम्पन्न हुआ।
* प्रभाकरवर्धन की चितां मे रानी यशोमती कूदकर आत्मदाह कर ली।
* राज्यवर्धन ने लगभग 580 से 605 ईस्वी तक राज्य किया।
* हर्चरित मे पुष्यभूति वंश की तुलना चन्द्र तथा मौखिर वंश की तुलना सूर्य से की गयी है।
* राज्यवर्धन की मृत्यु के बाद 606 ईस्वी में हर्षवर्धन थानेश्वर की सिहांसन पर बैठा। उस समय उसकी आयु मात्र 16 वर्ष था।
* हर्षवर्धन का बचपन ममरे भाई माण्डी तथा मालवराज महासेनगुप्त के दो पुत्रों कुमारगुप्त तथा माधवगुप्त के साथ व्यतीत हुआ।
* बंगाल या गौड़ का राजा शशांक हर्ष की समकालीन था।
* हर्ष को कुन्तल नामक अश्वारोही से अपने भार्इ की गौड़ाधिपति शशांक द्धारा हत्या का समाचार प्राप्त हुआ।
* शशांक ने कुशीनगर और वाराणसी के बीच के सभी के सभी बौद्ध बिहारों को उसने तोड़वा दिया था।
* शशांक ने पाटलिपुत्र में बुद्व के पदचिन्हनो से अंकित पत्थरो को उसने गंगा में फेक दिया।
* शशांक ने गया के बोधिवृक्ष को उसने काट डाला।
* शशांक ने बुद्व की मूर्ति के स्थान पर उसने शिव की मूर्ति स्थापित की।
* हृोनसांग बताता है कि 637 ईस्वी में जब उसने बोधिवृक्ष को नष्ट किया तो उसी के बाद शशांक की मृत्यु हुई थी।
* शशांक आरम्भ में साधारण सरदार नेता था।
* शशांक को रोहतासगढ के युद्ध में उसे महासामन्त शशांक देव कहा गया है।
* शशांक को कर्णसुवर्ण का स्वामी कहा गया है।
* शशांक ने सोने के सिक्के चलाये और उन पर अपनी उपाधि श्री शशांक अंकित की।
* शशांक शिव का अनुयायी था।
* चीनी लेखक गा-त्वान-लिन् में सर्वप्रथम 641 ईस्वी में हर्ष ने मगधराज की उपाधि धारण की थी।
* हर्ष ने यह सुना कि कश्मीर में भगवान बुद्ध का एक दांत है। वह स्वंय कश्मीर की सीमा पर आया दांत का दर्शन और पुजा के निमित कश्मीर नरेश से आज्ञा मांगी। (राधाकुमुद मुखजी ने जीवनी)
* कामरूप का राजा भास्करवर्मा हर्ष का समकालीन था।
* परममट्टारक,महाराजाधिराज,चक्रवत्ती,परमेष्वर एकाधिराज,सार्वभौम और परम देवता जैसी उपाधि हर्ष जयस्कन्धावरो अर्थात्त शिविरों मे ठहरता था।
* हर्ष के अधीनस्थ शासक महाराज अथवा महासामन्त कहे जाते थे।
* हर्ष के समय विदेश सचिव अवन्ति था और सिहंनाद उसका प्रधान सेनापति था।
* हर्ष के समय में भण्डी उसका प्रधान सचिव था। यह सभवत: हर्ष का ममेरा भार्इ था।
* विदेष सचिव को महासन्धिविग्रहिका भी कहा जाता है।
* कतंक अश्वारोही सेना का सवोच्च अधिकारी तथा चद्रगुप्त गजसेन का प्रधान था।
* प्रान्त कों भुक्ति कहा जाता था। प्रत्येक भुक्ति का शासक राजस्थानीय उपरिक जिलों मे हुआ था। जिले का विषय कहा जाता था। जिसका प्रधान विषयपति होता था।
* ग्राम शासन की सबसे छोटी इकार्इ थी। ग्रामशासन का प्रधान ग्रामक्षपटलिक कहा जाता है।
* पुलिस कमियों को चाट या भाट कहा गया है। दण्डपाशिक तथा दाण्डिक पुलिस विभाग के अधिकारी होते थे।
* घुड़सेना के अधिकारियों को वृहदाश्ववार कहा जाता था।
* पैदल सेना के अधिकारियों की बलाधिकृत और महाबलाधिकृत कहा जाता है।
* प्रमुख सैन्याधिकारी को महासेनापति अथवा महाबलाधिकृत कहा जाता था।
* प्रभाकरवर्धन सूर्य का उपासक था।
* राज्यवर्धन बौद्ध का उपासक था।
* हर्ष अतिंम सालों में वह महायान बौद्ध बन गया।
* हर्षचरित के अनुसार थानेश्वर के प्रत्येक घर में भगवान् शिव की पूजा होती थी।
* शिव के उपासना के लिए मूतियॉ तथा लिंग स्थापित किए जाते है।
* शिव के अतिरिक्त विष्णु और सूर्य की भी उपासना होती है।
* हर्ष ने बौद्ध धर्म की महायान शाखा को सरक्षण प्रदान किया था।
* नालन्दा महाविहार में महायान बौद्ध धर्म की ही शिक्षा दी जाती थी।
* कृषि जनता की जीविका का मुख्य आधार थी।
* हर्षचरित में सिचाई के साधन के रूप में तुला यन्त्र (जल पम्प) का उल्लेख मिलता है।
* मथुरा सूती कपड़ो के निमार्ण के लिए प्रसिद्ध था।
* पूर्वी भारत में ताम्रलिप्ति तथा पश्चिमी भारत में भड़ौच सुप्रसिद्ध बन्दरगाह थे।
* हर्ष को सस्ंकृत के तीन नाटक ग्रन्थों का रचियता माना जाता है- प्रियदर्शिका,रत्नावली और नागानन्द।
* जयदेव ने हर्ष को कविता कामिनी का साक्षात हर्ष निरूपित किया है।
* हर्ष के दरबारी कवि बाणभट्ट थे। उन्होने हर्शचरित तथा कादम्बरी की रचना की।
* मयूर ने सूर्यषतक नामक एक सौष्लोको का सग्रंह लिखा।
* पूर्वमीमांसां के प्रकाण्ड विद्धान कुमारिलभट्ट को हर्शकालीन मानते है।
* प्रसिद्ध गणितज्ञ ब्रहृागुप्त का जन्म भी हर्ष के समय में ही हुआ था। ब्रहृासिद्धात ग्रथं की रचना की थी।
* हरिदत्त का भी हर्ष ने सरक्षंण प्रदान किया।
* एक यूरोपीय लेख हर्ष को हिन्दू काल का अकबर कहता है।
* हृोनसांग ने कन्नौज की धर्मसभा तथा प्रयाग के छठें महामोक्षपरिषद् मे भाग लिया।
* कन्नौज की धर्मसभा में हृोनसांग का महायान देव व मोक्षदेव उपाधि से विभूषित किया गया।

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