* भारत में आर्यो का आगमन 1500 ई.पू से कुछ पहले हुआ। |
* भारत में आर्यो सर्वप्रथम सप्त सैन्धव प्रदेश में बसना प्रारभ किया। |
* सत नदियों का जिक्र हमें ऋग्वेद से मिलता है ये नदीया है-सिधु,सरस्वती, शतुद्धि (सतलज),विपासा व्यास परूश्णी (रावी)वितस्ता झेलम,आस्किनी। |
* अफगानिस्तान की नदियां का जिक्र भी हमे ऋग्वेद से मिलता है। कुभा (काबुल),कुभु (कुर्रम),गोमती (गोमल) और सुवांस्तु (स्वात) आदि। |
* आर्य सवप्रर्थम पंजाब और अफगानिस्तान के क्षेत्र में आकर बसे। |
* अतं मे बंगाल और बिहार के दक्षिणी एवं पूर्वी भागों पर कब्जा कर पूरा उत्तर भारत पर अधिकार कर लिया कालान्तर में इस क्षेत्र का नाम आर्यावर्त रखा गया। |
* ऋग्वेद में करीब 25 नदियों का जिक्र मिलता है जिसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी सिधु का वर्णन कर्इ बार आया है। |
* सर्वप्रथम जब आर्य भारत में आये तो उनका यहॉ दास अथवा दस्यु कहे जाने वाले लोगो से सधर्श हुआ और अतं मे आर्यो को विजय मिली। |
* ऋग्वेद में आर्यो के पॉच कबीले के होने की वजह से पंचजन्य कहा गया ये थे-पुरू,यदु,अनु तुर्वशु और द्रह्मु। |
* भरत कुल के नाम से ही इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। |
* इनके पुरोहित थे वशिष्ठ। |
* ऋग्वैदिक काल में समाज कबीले के रूप में संगठित था कबीले को जन भी कहा जाता था। |
* कबीले को जन का प्रशासन कबीले का मुखिया करता था जिसे राजन कहा जाता था। |
* राजा कोई भी निर्णय कबायली सघंटनो के सलाह से लेता था। |
* राजा की सहायता हेतु पुरोहित,सेनानी और ग्रामीणी नामक प्रमुख अधिकारी थे। |
* पुरोहित का पद वशांनुगत होता था। |
* लड़ाकू दलों के प्रधान ग्रामणी कहलाते थे। |
* सैन्य संचालन ब्रात,गण,ग्राम व सर्ध नामक कबीलार्इ टुकड़िया करती थी।सूत रथकार तथा कम्मादि नामक पदाधिकारी “रत्नी” कहे जाते थे। |
* र्स्पश जनता की गतिविधियों को देशकने वाले गुप्पचर होते थे। |
* वतपति गोचर भूमि का अधिकारी एवं कुलप परिवार का मुखिया होता था। |
* ऋग्वैदिक समाज की सबसे छोटी इकार्इ परिवार या कुल होती है। |
* ऋग्वेद मे जन शब्द करीब 275 बार एवं विश 170 बार आया है। |
* ऋग्वैदिक समाज पितृतन्त्रात्मक समाज था। |
* शतपथ ब्राहाण में पत्नी को पति की अर्द्वाड्रिनी बताया गया है। |
* जीवनभर अविवाहित रहने वाली लडकियो को अमाजू कहा जाता है। |
* ऋग्वैदिक कालीन लोगो का मुख्य भोज्य पदार्थ था अन्न,फल,दूध,दही,घी और मॉस। |
* आर्य लोग नमक और मछली का प्रयोग नही करते थे। |
* ऋग्वेद में आर्यो के मुख्य व्यवसाय के रूप में पशुपालन और कृषि का विवरण मिलता है। |
* ऋग्वेद में कृषि का उल्लेख मात्र 24 बार ही हुआ है जिसमे अनेक स्थानो पर यव एवं शब्द का उल्लेख मिलता है। |
* गो शब्द का प्रयोग ऋग्वेद मे 174 बार आया है। |
* युद्ध का प्रमुख कारण गयों की गवेशणा अर्थात गावेष्टि था। |
* पुरोहितो को गाये और दासियॉ दी दक्षिणा के रूप में दिया जाता था। |
* उर्वरा जुते हुए खेत को कहा जाता था। |
* लांगल शब्द का प्रयोग हल के लिए हुआ है। |
* बृक शब्द का प्रयोग बैल के लिए हुआ है। |
* करीश शब्द का प्रयोग गोबर की खाद के लिए होता था। |
* अवत शब्द का प्रयोग कूपौ के लिए होता था। |
* सीता शब्द का प्रयोग हल से बनी नालियों के लिए होता था। |
* ऊदरे शब्द का प्रयोग अनाज नापने वाले पात्र के लिए होता था। |
* स्थिवि शब्द का प्रयोग अनाज जमा करने वाले कोठार के लिए होता है। |
* कीनांश शब्द हलवाहे के लिए प्रयोग किया गया है। |
* पर्जन्य शब्द बादल के लिए प्रयोग किया गया है। |
* ऋग्वैदिक काल मे राजा भूमि का स्वामी नही होता था वह विशेष रूप से युद्धकालीन स्वामी होता था। |
Bharat Ke Parmukh Aitihasik Yuddh
| Chalukya Dynasty | |
---|
* ऋग्वैदिक काल में व्यापार करने वाले व्यापारियों एवं व्यापार हेतु सुदूरवर्ती प्रदेशो में भ्रमण करने वाले व्यक्ति को पणि कहा जाता था। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* ऋग्वैदिक काल में ऋण देकर ब्याज लेने वाले वर्ग को बेकनाट (सूदखोर)कहा जाता था। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* अयस शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में तांबे एवं कांसे के लिए किया गया था। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* तरस शब्द का प्रयोग ऋग्वेद मे करधा के लिए। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* तन्तु एवं ओतु शब्द का प्रयोग ताने-बाने के लिए। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* शुघ्यव शब्द का प्रयोग ऊन के लिए किया जाता है। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* ऋग्वेद मे कपास का उल्लेख नहीं मिलता है। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* ऋग्वेद मे हिरण्य एवं सुवर्ण शब्द का प्रयोग सोने के लिए किया गया है। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* निष्क सोने का एक आभूषण होता था। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* तक्षन व त्वस्ट्रा शब्द का प्रयोग बढ़र्इ के अर्थ मे किया गया है। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* अनस साधारण गाड़ी को कहा जाता था। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* नद्र (नरकट) का प्रयोग ऋग्वेद काल मे स्त्रियों चटार्इ बुनने के लिए करती थी। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* आर्यो के सामाजिक जीवन में रणों का अधिक महत्व होने के कारण तक्षा की सामाजिक प्रतिष्ठा अधिक बढ़ी हुर्इ थी। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* चर्मन्त चमड़े का काम करने वालों को कहा जाता था। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* ऋग्वैदिक आर्यो की देवमण्डली तीन भागों मे विभाजित थी। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* आकाश के देवता-सूर्य,धौस,मित्र, पूषण, विष्णु, उषा, अश्विन,सवितृ,आदित्य। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* अन्तरिक्ष के देवता इन्द्र,मरूत रूद्व वायु पर्जन्य आप, मातरिश्वन,एकपाद,त्रिताप्य। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* पृथ्वी के देवता अग्नि,सोम,पृथ्वी,बृहस्पति तथा सरस्वती आदि। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* ऋग्वैदिक में इन्द्र का वर्णन सर्वाधिक प्रतापी देवता के रूप में किया गया है। ऋग्वेद के करीब 250 सुक्तो में इनका वर्णन है। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* ऋग्वेद मे दूसरा महत्वपूर्ण देवता अग्नि था। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* ऋग्वेद में करीब 200 सूक्तो मे अग्नि का जिक्र किया गया। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* ऋग्वेद मे तीसरा स्थान वरूण का माना जाता है। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* वरूण को ईरान में इन्हे अहूरमज्दा तथा यूनान में ओरनोज के नाम से जाना जाता था। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* घौ (आकाश) को ऋग्वैदिक कालीन देवों से सबसे प्राचानी माना जाता था। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* ऋग्वैदिक कालीन में सोम को वनस्पति के देवता के रूप में। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* उषा को प्रगति एवं उत्थान के देवता के रूप मे। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* विष्णु में विश्व के संरक्षक और पालनकर्त्ता के रूप में। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* मरूत को ऑधी तूफान के देवता के रूप में माना जाता था। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* ऋग्वेद में उषा,आदिति,सूर्या जैसी देवियो का वर्णन है। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* वरूण को ऋत का सरक्षक बताया गया है। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* ऋग्वेद में बहुदेववाद,एकात्मवाद एवं एकेश्वरवाद का उल्लेख मिलता है। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
* ऋग्वेद में मंदिर या मूर्ति पुजा का कोई प्रमाण नही मिलता है। |
प्राचीन नाम | आधुनिक नाम |
क्रुभु | कुर्रम |
कुभा | काबुल |
वितस्ता | झेलम |
आस्किनी | चिनाब |
परूष्णी | राबी |
शतुद्धि | सतलज |
विपाश | व्यास |
सदानीरा | गंडक |
दृषद्रती | घघ्धर |
गोमती | गोमल |
सुवस्तु | स्वात |
सिंधु | सिन्ध |
सरस्वती/दृषद्रती | धघ्धर/रक्षी/चितंग |
सुशोमा | सोहन |
मरूद्वृधा | मरूवर्मन |
* आर्य शब्द संस्कृत से या जोराश्ट्रीयन के एरियन से लिया गया है इसका अर्थ होता है |
* ऋग्वेद में सिंहो का वर्णन है लेकिन बाघो का नहीं। इसमे चावल का वर्णन नहीं है। |
* वैदिक काल में राज्य का आधार परिवार गृह या कुल था। |
* यजुवेंद में प्रथम बार राजयूय तथा वाजपेय जैसे दो राजकीय समारोहों का उल्लेख प्राप्त होता है। |
* यजुवेंद से यज्ञ संबंधी अनुश्ठानों के अतिरिक्त राजनैतिक एवं सामाजिक परिस्थिति का भी परिचय प्राप्त होता है। |
* बाह्मण ग्रंथो का मुख्य उद्देश्य पवित्र ग्रेथों तथा धमागनुष्ठानो की व्याख्या करना है। इसके अधिकांश भाग गघं में है। |
* छोदोग्य बाह्मण में जन्म तथा विवाह सें संबंधित अनुष्ठान दिये गये है। |
* सर्वाधिक प्राचीन बाह्मण प्रचविश बाह्मण अथवा ताड्ंय महाब्राह्मण है। |
* सबसे बाद का ब्राह्मण गोपथ ब्राह्मण है। |
* ऐतिहासिक दृश्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण ब्राह्मण शतपथ ब्राह्मण है। |
* आरण्यक का संबंध बहरूविधा,रहस्यवाद और जीवन संबधी विशयों से है। |
* सामवेद तथा अथर्ववेद का कोर्इ आरण्यक नही है। |
* मैत्रीयणी उपनिषद में चार आश्रम तथा त्रिमूति का उल्लेख है। |
* ऐतिहासीक नजर से सर्वाधिक महत्र्वपूण सूत्र साहित्य कल्प सूत्र है। |
* देवताओ के यज्ञ के लिए आहवान करने वाले होत्रि गायक उद्गात्रि,यज्ञ करने वाला अध्र्वयु तथा सर्पूण यज्ञों की देख रेख करने वाला ऋित्वध कहा जाता था। |
* भगवानपुरा से तेरह कमरो वाला घर मिला हैं जहॉं से आर्यो के चित्रित घूसर मृदभांड मिले है। |
* ऋग्वेद के मंडूक सूक्त में ऋग्वैदिक शिक्षा पद्धति की झलक मिलती है। |
* मैक्समूलर के अनुसार आर्य शब्द भाशा व्यंजक है जिसका अर्थ है श्रेष्ठ। |
* ऋग्वेद में लगभग 40 नदियों का नाम है। उल्लिखित अधिकांश नदियां सिधु और पंजाब क्षेत्र की है।गंगा नदी का एक बार तथा युमना नदियां का तीन बार उल्लेख हुआ है। |
* सरयु नदी का तीन बार उल्लेख हुआ है। |
* आर्यजन विध्य एवं सतपुड़ा से परिचित नही थें। |
* सरस्वती नदी को वाणी,प्रर्थना और कविता की देवी, बुद्धि को तीव्र करने वाली और संगीत की प्रेरणादायी कहा गया है। |
* वैदिक साहित्यों मे मुख्यत: तीन नगरों अयोध्या, वैशाली एवं कांपिल्य का नाम मिलता है। |
* ऋग्वेद में चार समुद्रो का वर्णन हैं अपर,पूर्व,सरस्वती शर्यणावत। |
* आर्यजन पुश्चरिष्णु (दुर्गो को गिरने वाला यत्रं) का प्रयोग युद्ध में करते थे। |
* वेद शब्द को संस्कृत के विद् से लिया गया है जिसका भावार्थ है ज्ञान होना। |
* चारों वेदो को संहिता भी माना जाता है क्योकि ये उस समय की मौखिक परंपरा के प्रतीक है। |
* एक सपन्न आदमी जो पालतु पशुओं का स्वामी होता था-गोमत कहलाता था। |
* ऋग्वैदिक काल में भू-स्वामित्व के आधार पर व्यक्तिगत संपति का कोई सिद्वात नही था। |
* योद्धा को राजनय कहा जाता था। |