★ प्रभावती के पुत्र दामोदर सेन ने प्रवरसेन की उपाधि धारण की इसने प्रवरपुर नगर की स्थापना की। |
★ प्रवरसेन द्धितीय की रूचि साहित्य में थी सेतुवध नामक ग्रथ की रचना की। |
★ प्रवरसेन द्धितीय का पुत्र नरेन्द्रसेन उसका उत्तराधिकारी बना। |
★ पृथ्वीसेन ने पद्मपुर को अपनी राजधानी बनाई (प्रो मीराशी के अनुसार) वाकाटकों की इस शाखा की अस्तित्व 480 ई. तक रहा। |
★ वाकाटको की वत्स-गुल्मा या अमुख्य शाखा का सस्थांपक प्रवरसेन प्रथम का पुत्र सर्वसेन था। |
★ प्रवरसेन ने वत्सगुल्मा को अपनी राजधानी बनाकर धर्ममहाराज की उपाधि धारण की। |
★ प्रवरसेन ने प्राकृत ग्रथ हरिविजय एवं गाथासप्तशती के कुछ अशों का लेख माना जाता है। |
★ सर्वसेन के उत्ताधिकारी विध्यसेन द्धितीय ने विध्यशक्ति द्धितीय एवं धर्म महाराज की उपाधि धारण की। |
★ हरिषेण के मृत्यु के बाद वाकाटक वंश का इतिहास अधंकार में है। |
★ सम्भवत: कलचुरी वंश के द्वारा वाकाटक वंश का अन्त किया गया। |
★ वाकाटक वंश अधिकाश शासक शैवघर्म के अनुयायी थे हालाकि रूद्रसेन द्धितीय विष्णु की पुजा करता था। |
★ प्रवरसेन द्धितीय ने महाराष्ट्रीय लिपि में सेतुबन्ध ग्रथ जिसे रावणवहों भी कहा जाता था की रचना की। |
★ टिगोवा मंदिर में गंगा युमना की मूतियॉ स्थापित है। |
★ अजन्ता की बिहार गुफा सख्या 16,17 एवं चैत्य गुफा सख्या 19 का निर्माण वाकाटकों के समय में हुआ। |
★ गुफा 16 का निर्माण हरिषेण के योग्य मंत्री बराह देव ने करवाया। |
★ फर्गुसन महोदय ने गुफा सख्ंया 19 को भारत के बौद्ध कला का सर्वश्रेष्ट उदाहरण बताया है। |
★ आचारण में पृथ्वीसेन प्रथम की तुलना युधिष्ठिर से की है। |
★ वाकाटक वंश की वासीम शाखा की स्थापना प्रवरसेन प्रथम के छोटे पुत्र सर्वसेन ने की। |
★ हरिशेंण (475-510 ई.) वासीम शाखा का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा हुआ। |
★ सर्वसेन ने हरविजय नामक प्राकृत काव्य ग्रथ लिखा। |
★ पृथ्वीसेन द्धितीय के सामन्त व्याध्रदेव ने नचना के मदिर का निर्माण करवाया था। |